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जिदंगी पहचान मांगती है, भागते-दौड़ते वक्त के साथ

जिदंगी पहचान मांगती है, 
भागते-दौड़ते वक्त के साथ
थोड़ा सा सूकुन का आराम मांगती है|
ज्यादा पा लेने की सीमाएँ निश्चित नहीं है, 
जितना भी कैद कर लो मुठ्ठी में कम ही है, 
जिन्दगी तो बुनियादी जरूरतों का 
बस जरा सा सामान ही मांगती है|

©Jyot kaur.
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