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मै अंधी, बेहरी, गूंगी, भीड़ हूं, मुझे किसी से क्या

मै अंधी, बेहरी, गूंगी, भीड़ हूं, मुझे किसी से क्या..

रोज सवेरे अपने अपने, घर से मै निकलती हूं,
कितने सालों तक मै अपने, एक ही रूट पे चलती हूं,
रोज कितने ही गलत काम को, नज़रंदाज़ कर देती हूं,
आँखें मूंद के चलती रहती, मै आवाज न देती हूं,

हर रोज देखती सड़कों पे मै, घूसखोरी का नंगा नाच,
मुश्किल में हो कोई क्यूं ना, मुझपे ना बस आए आंच,
घर जा के मै रोज बताती, क्या क्या देखा सड़कों में,
छोटी छोटी बातों पे क्यूं, हुई लड़ाई लड़कों में,
कैसे किसने कहीं किसी का, आज मोबाइल छीना था,
कैसे कोई कहीं गिरा था, क्यूं कि गीला झीना था,

थे आज भी गड्ढे खुले सड़क पे, आज भी ना कोई बोला था,
खानापूर्ति कर के किसी ने, उनपे बनाया गोला था,
भीख मांगते बच्चे मैने, आज भी देखे सड़कों पे,
गुस्सा भी था आया उनका, मजाक बनाते लड़कों पे,

लेकिन..

मै अंधी, बेहरी, गूंगी, भीड़ हूं मुझे किसी से क्या..

©Pankaj Pahwa
  #Bheed
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Pankaj Pahwa

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