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बलात्कार- असल मुद्दे नारी के सम्मान पर नज़रें शिका

बलात्कार- असल मुद्दे

नारी के सम्मान पर नज़रें शिकारी की
फिर भी कोई सजा नही व्यभिचारी की

पहचान छीन ले गया उसकी अपने साथ
ज़माना भी कर रहा फजीहत नाम की  आज हमारे समाज में नारी की स्थिति में सुधार हुआ है। उसके अस्तित्व को वह सम्मान दिया जा रहा है जिसकी वो हक़दार है लेकिन उसकी सुरक्षा की स्थिति बद से बदतर हो गई है औरउन पर होने वाले अत्याचारों में सबसे अधिक संख्या है बलात्कारों की।

बलात्कार के हादसे से जितना अधिक एक नारी का जीवन प्रभावित होता है किसी अन्य का नहीं क्योंकि एक पीड़िता होने के बाद भी समाज उसे ही दोषी ठहरा देता हैं। सड़कों पर दोषियों को सज़ा दिलवाने के जुलूस निकालकर, मोमबत्ती जलाकर विरोध प्रदर्शन किया जाता हैं लेकिन बलात्कार के बाद उसके असल मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है या किसी का ध्यान उस ओर जाता ही नहीं।

ऐसे किसी हादसे के बाद स्त्री के शरीर के साथ-साथ उसका मन भी एक भयंकर दर्द से गुजरता है। यह दर्द तब और भी बढ़ जाता है जब समाज उस स्त्री के रहन सहन, उसके पहनावों को ही दोष देते हुए उसे कटघरे में खड़ा कर देता है। समाज की इस प्रताड़ना का डर पीड़िता के परिवार को इस तरह प्रभावित करता है कि समाज मे उसकी पहचान बदल दी जाती है लेकिन उसके गुनहगार का नाम तक नही बदला जाता।

इन पीड़ितों के साथ हो रहे अन्याय की एक मुख्य वजह ब्लात्कार के झूठे मुकदमे दर्ज करवाने वाली महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या है जिनके कारण इस हादसे का शिकार हुई महिलाओं को समाज संदेह की दृष्टि से देखता है। उनके चरित्र पर सवाल खड़े किए जाते है। प्रतिशोध की भावना से किए गए इन झूठे मुकदमों में फंसे हुए लोगों का भविष्य भी पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। ब्लात्कार की सच्ची घटनाओं और झूठे मुकदमों के बीच फंसी हुई एक स्त्री का जीवन कभी सामान्य नही हो पाता। पुरुषों की वासना से जन्मा हुआ यह अभिशाप समाज का वो दोहरा चरित्र उजागर करता है जहाँ पीड़ित को न्याय नहीं मिलता बल्कि तिरस्कार मिलता हैं।
बलात्कार- असल मुद्दे

नारी के सम्मान पर नज़रें शिकारी की
फिर भी कोई सजा नही व्यभिचारी की

पहचान छीन ले गया उसकी अपने साथ
ज़माना भी कर रहा फजीहत नाम की  आज हमारे समाज में नारी की स्थिति में सुधार हुआ है। उसके अस्तित्व को वह सम्मान दिया जा रहा है जिसकी वो हक़दार है लेकिन उसकी सुरक्षा की स्थिति बद से बदतर हो गई है औरउन पर होने वाले अत्याचारों में सबसे अधिक संख्या है बलात्कारों की।

बलात्कार के हादसे से जितना अधिक एक नारी का जीवन प्रभावित होता है किसी अन्य का नहीं क्योंकि एक पीड़िता होने के बाद भी समाज उसे ही दोषी ठहरा देता हैं। सड़कों पर दोषियों को सज़ा दिलवाने के जुलूस निकालकर, मोमबत्ती जलाकर विरोध प्रदर्शन किया जाता हैं लेकिन बलात्कार के बाद उसके असल मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है या किसी का ध्यान उस ओर जाता ही नहीं।

ऐसे किसी हादसे के बाद स्त्री के शरीर के साथ-साथ उसका मन भी एक भयंकर दर्द से गुजरता है। यह दर्द तब और भी बढ़ जाता है जब समाज उस स्त्री के रहन सहन, उसके पहनावों को ही दोष देते हुए उसे कटघरे में खड़ा कर देता है। समाज की इस प्रताड़ना का डर पीड़िता के परिवार को इस तरह प्रभावित करता है कि समाज मे उसकी पहचान बदल दी जाती है लेकिन उसके गुनहगार का नाम तक नही बदला जाता।

इन पीड़ितों के साथ हो रहे अन्याय की एक मुख्य वजह ब्लात्कार के झूठे मुकदमे दर्ज करवाने वाली महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या है जिनके कारण इस हादसे का शिकार हुई महिलाओं को समाज संदेह की दृष्टि से देखता है। उनके चरित्र पर सवाल खड़े किए जाते है। प्रतिशोध की भावना से किए गए इन झूठे मुकदमों में फंसे हुए लोगों का भविष्य भी पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। ब्लात्कार की सच्ची घटनाओं और झूठे मुकदमों के बीच फंसी हुई एक स्त्री का जीवन कभी सामान्य नही हो पाता। पुरुषों की वासना से जन्मा हुआ यह अभिशाप समाज का वो दोहरा चरित्र उजागर करता है जहाँ पीड़ित को न्याय नहीं मिलता बल्कि तिरस्कार मिलता हैं।
akankshagupta7952

Vedantika

New Creator

आज हमारे समाज में नारी की स्थिति में सुधार हुआ है। उसके अस्तित्व को वह सम्मान दिया जा रहा है जिसकी वो हक़दार है लेकिन उसकी सुरक्षा की स्थिति बद से बदतर हो गई है औरउन पर होने वाले अत्याचारों में सबसे अधिक संख्या है बलात्कारों की। बलात्कार के हादसे से जितना अधिक एक नारी का जीवन प्रभावित होता है किसी अन्य का नहीं क्योंकि एक पीड़िता होने के बाद भी समाज उसे ही दोषी ठहरा देता हैं। सड़कों पर दोषियों को सज़ा दिलवाने के जुलूस निकालकर, मोमबत्ती जलाकर विरोध प्रदर्शन किया जाता हैं लेकिन बलात्कार के बाद उसके असल मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है या किसी का ध्यान उस ओर जाता ही नहीं। ऐसे किसी हादसे के बाद स्त्री के शरीर के साथ-साथ उसका मन भी एक भयंकर दर्द से गुजरता है। यह दर्द तब और भी बढ़ जाता है जब समाज उस स्त्री के रहन सहन, उसके पहनावों को ही दोष देते हुए उसे कटघरे में खड़ा कर देता है। समाज की इस प्रताड़ना का डर पीड़िता के परिवार को इस तरह प्रभावित करता है कि समाज मे उसकी पहचान बदल दी जाती है लेकिन उसके गुनहगार का नाम तक नही बदला जाता। इन पीड़ितों के साथ हो रहे अन्याय की एक मुख्य वजह ब्लात्कार के झूठे मुकदमे दर्ज करवाने वाली महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या है जिनके कारण इस हादसे का शिकार हुई महिलाओं को समाज संदेह की दृष्टि से देखता है। उनके चरित्र पर सवाल खड़े किए जाते है। प्रतिशोध की भावना से किए गए इन झूठे मुकदमों में फंसे हुए लोगों का भविष्य भी पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। ब्लात्कार की सच्ची घटनाओं और झूठे मुकदमों के बीच फंसी हुई एक स्त्री का जीवन कभी सामान्य नही हो पाता। पुरुषों की वासना से जन्मा हुआ यह अभिशाप समाज का वो दोहरा चरित्र उजागर करता है जहाँ पीड़ित को न्याय नहीं मिलता बल्कि तिरस्कार मिलता हैं।