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आज खुद से मुलाकात करने को जी चाहता है खुद से बात

आज खुद से मुलाकात करने को जी चाहता है 
खुद से बात करने को जी चाहता है ।

थक गया हूं औरों की मुलाकातों से
अब इन रस्मों रिवाजों से बाहर आने को जी चाहता है ।

एक नमी सी जमी है इन आंखों में कहीं दूर 
इस नमी से चश्म भिगोने को जी चाहता है ।

वक़्त को बदलते देर नहीं लगती
पर अब वक्त के साथ बहने को जी चाहता है ।

याद है मुझे बचपन के वो दिन 
जब बातें भी खुद होती थी
और मुलाकातें भी खुद से होती थी
महज़ फिर से बच्चा बनने को जी चाहता है ।

अंधेरा बहुत है इस दुनिया में 
पर फिर भी
जुगनू की तरह खुद से चमकने को जी चाहता है ।।
 
                    ~ओ.पी. विद्रोही poem 1....on this ..app
आज खुद से मुलाकात करने को जी चाहता है 
खुद से बात करने को जी चाहता है ।

थक गया हूं औरों की मुलाकातों से
अब इन रस्मों रिवाजों से बाहर आने को जी चाहता है ।

एक नमी सी जमी है इन आंखों में कहीं दूर 
इस नमी से चश्म भिगोने को जी चाहता है ।

वक़्त को बदलते देर नहीं लगती
पर अब वक्त के साथ बहने को जी चाहता है ।

याद है मुझे बचपन के वो दिन 
जब बातें भी खुद होती थी
और मुलाकातें भी खुद से होती थी
महज़ फिर से बच्चा बनने को जी चाहता है ।

अंधेरा बहुत है इस दुनिया में 
पर फिर भी
जुगनू की तरह खुद से चमकने को जी चाहता है ।।
 
                    ~ओ.पी. विद्रोही poem 1....on this ..app