आज खुद से मुलाकात करने को जी चाहता है खुद से बात करने को जी चाहता है । थक गया हूं औरों की मुलाकातों से अब इन रस्मों रिवाजों से बाहर आने को जी चाहता है । एक नमी सी जमी है इन आंखों में कहीं दूर इस नमी से चश्म भिगोने को जी चाहता है । वक़्त को बदलते देर नहीं लगती पर अब वक्त के साथ बहने को जी चाहता है । याद है मुझे बचपन के वो दिन जब बातें भी खुद होती थी और मुलाकातें भी खुद से होती थी महज़ फिर से बच्चा बनने को जी चाहता है । अंधेरा बहुत है इस दुनिया में पर फिर भी जुगनू की तरह खुद से चमकने को जी चाहता है ।। ~ओ.पी. विद्रोही poem 1....on this ..app