पल्लव की डायरी घर आँगन की शान,परिवार की सुध लेती थी रूखी सुखी खाकर,सब की बाट जोहती थी कुत्ते भी उसकी मर्जी से,सीढ़ी नही चढ़ सकते थे आज पुरखो की कमी उनको खलती है आधुनिकता के दौर में,दादा दादी की कदर घर परिवारों में कहाँ होती है हम दो हमारे दो का मंत्र अपनाकर माँ बाप की तौहीन बराबर होती है वैश्विकता के चकाचोंध में बृद्धा आश्रम में बढ़ोतरी होती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" हम दो हमारे दो का मंत्र अपनाकर,पुरखो की तौहीन होती है