मगरूर-ऐ-इश्क में जा निसार करते हो, तुम भी अब आशिक हो फिर क्या मजाक करते हो, बेगैऱत हो तुम जो लोगों से लगाव रखते हो, अपनों को छोड़के अजनबी से प्यार करते हो! सबके लिए दिलों के दरवाजे खुले रखते हो, अजीब हो यार ! दोस्त से भी ये बात छुपाये रखते हो! घर को छोड़ के सड़को पर महफिलें करते हो, ऊपर से हमें भी मिलने की गुज़ारिश करते हो! रूठने को मनाने को, लड़ने को बेकरार रहते हो, मसला यह है कि पछतावा करने का भी नाटक रचते हो! खुल्लेआम अपने अरमानों की बोली लगाते हो, "सुरी" फिर भी तुम औरों की खातिर मरने को भी तैयार रहते हो! सूरी✍️ इक अजनबी सूरी✍️