तालियां बजाइये देश तरक्की में है विकाश पिस रहा है अभी चक्की में है दम लगाते हुए पैग मिलाते हुए हाय बाय और हैण्ड मिलाते हुए समाज के प्राणी चायनीज खाये जा रहे है खुद मॉडर्न होने का ठप्पा लगाये जा रहे है चैंनलों की दुनिया है फाइलों का अंबार है जनता लाचार है लालबत्ती में सरकार है महंगाई बेरोजगारी सब चरम में है बेकार और नकारा युवाओं की भरमार है गरीबी तो मिटी नही गरीब मिट रहा है पर मोटे पेट वालो को नही दिख रहा है शरीर और समाज दोनों बीमार हो चुके है प्रकृति से दूरियां है शक्ति अपनी खो चुके है क्या थे क्या हो गए फुरसत नही सोचने की सिर्फ रोते है, जब बारी आती है भोगनें की सिर्फ रोते है..... जब बारी आती है भोगनें की