यूं तो निभा रही हूं, दायित्व अपना चारों दिशाओं में, पर खुले आसमां में जाकर, आज उड़ने का जी चाह रहा है..... #@ दायित्व#@ #@खुला आकाश#@ #@ऐसा कहा होता है#@