अपना वर्तमान सुधारने के लिए, बच्चों के बचपन से ही खिलवाड़ करते देखा है। छीनकर बचपन,बचपन से,बचपन को समय से पहले ही समझदार बनते देखा है। भविष्य की चिंता में वर्तमान को भी बिगाड़ते हुए, हमने बहुत लोगों को देखा है। लोग स्वार्थी हो गए सभी,लोगों के जिंदा शहर में मैंनें, बचपन को मरते देखा है। "लोगों के ज़िंदा शहर में मैंने बचपन को मरते देखा है"! 🅗🅘🅝🅣:- आप बालश्रम शीर्षक के ऊपर भी अपनी रचना लिख सकते हैं..! 𝐃𝐞𝐚𝐫 𝐰𝐫𝐢𝐭𝐞𝐫𝐬, ♦𝐭𝐨𝐝𝐚𝐲 𝐈 𝐡𝐚𝐯𝐞 𝐡𝐞𝐥𝐝 𝐚 𝐜𝐨𝐦𝐩𝐞𝐭𝐢𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐭𝐨 𝐚𝐥𝐥 𝐰𝐫𝐢𝐭𝐞𝐫𝐬.. (#𝐜𝐨𝐥𝐥𝐚𝐛_𝐜𝐨𝐦𝐩𝐞𝐭𝐢𝐭𝐢𝐨𝐧) ♦𝐭𝐢𝐦𝐞 𝐥𝐢𝐦𝐢𝐭 𝐭𝐢𝐥𝐥 𝐭𝐨𝐦𝐨𝐫𝐫𝐨𝐰 𝟏𝟐:𝟎𝟎 𝐩𝐦 ..