झील में खिलता इक कमल हो तुम मैं शायर मेरी इक गज़ल हो तुम जिंदगी भर बहाओं कम न होगा प्यार के पानी ka जलथल हो तूम कोई कमी नहीं निकाल सकता मैं सर से पांव तक मुकम्मल हो तुम कैसे नजर हटाऊ अपनी तुझ से जिता जागता ताज महल हो तुम जरा सी ही बात पर रुठ जाती हो लगता है थोड़ी सी पागल हो तुम बिना तेरे मैं कैसे गुजारु ये जिंदगी मेरी जिंदगी का हर पल हो तुम A ghazal in his memory