प्रेम.. प्रेम सा कहाँ रहा बही-खाते की लिपि बना तुमने वो न किया मैंने यह सब किया नाप-तोल तराजू बना तुम वो नहीं अब मुझको वो न रहने दिया आकलन का बिन्दु बना तुम प्रेम योग्य नहीं मैंने कैसे प्रेम कर लिया पश्चाताप की अदृश्य नदी बना तुमने जीना दुश्वार किया मैंने स्वयं कंटक पथ चुना रोज़-रोज़ का अनर्गल प्रलाप बना तुम भी चुप मैं भी चुप बिना क़ैद, क़ैदखाना बना प्रेम. अब प्रेम सा कहाँ रहा काल्पनिक चोला उतार यथार्थ धरा पर खड़ा...! 🌹 प्रेम.. प्रेम सा कहाँ रहा बही-खाते की लिपि बना तुमने वो न किया मैंने यह सब किया नाप-तोल तराजू बना