बाहर ने परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियमित को कोसना अपरिपक्व माथे की निशानी है किसी बालक की तरह जो जैसी परिस्थिति मिले उसी में रमे रहना उसे स्वीकार कर लेना सुख की असल कुंजी है यदि किसी एक वस्तु से सुखी नहीं मिलता तो दूसरी रहा भी हमें ही तलासनी होगी सबके लिए सुख के विकल्प अलग-अलग होते हैं यदि कोई रंग आपको नहीं बता तो कमी रंग में नहीं है हमारी मन स्थिति में है ©Ek villain #ravishkumar बाहरी परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियति को कोसना गलत बात है