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बाहर ने परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियमित

बाहर ने परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियमित को कोसना अपरिपक्व माथे की निशानी है किसी बालक की तरह जो जैसी परिस्थिति मिले उसी में रमे रहना उसे स्वीकार कर लेना सुख की असल कुंजी है यदि किसी एक वस्तु से सुखी नहीं मिलता तो दूसरी रहा भी हमें ही तलासनी होगी सबके लिए सुख के विकल्प अलग-अलग होते हैं यदि कोई रंग आपको नहीं बता तो कमी रंग में नहीं है हमारी मन स्थिति में है

©Ek villain #ravishkumar बाहरी परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियति को कोसना गलत बात है
बाहर ने परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियमित को कोसना अपरिपक्व माथे की निशानी है किसी बालक की तरह जो जैसी परिस्थिति मिले उसी में रमे रहना उसे स्वीकार कर लेना सुख की असल कुंजी है यदि किसी एक वस्तु से सुखी नहीं मिलता तो दूसरी रहा भी हमें ही तलासनी होगी सबके लिए सुख के विकल्प अलग-अलग होते हैं यदि कोई रंग आपको नहीं बता तो कमी रंग में नहीं है हमारी मन स्थिति में है

©Ek villain #ravishkumar बाहरी परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियति को कोसना गलत बात है
sonu8817590154202

Ek villain

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#ravishkumar बाहरी परिस्थिति को अपने दुख का दोषी मानकर नियति को कोसना गलत बात है #Society