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तप्त धरा की देह से हुआ बारिश का प्रिय मिलन खुश हो

तप्त धरा की देह से हुआ बारिश का प्रिय मिलन 
खुश होकर वो कर रही , प्रति दिन हरिहर श्रृंगार 
कहां गर्मी की वो तपन , धदकता धरा का वो दौर 
अब सावन मगन आँगन में , नाच रहे मन मोर 
गीत मस्त हो गा रहे धरती के भगवान 
वर्षा के आते ही , खुश हुआ सबसे अधिक किसान 
मेघ कहे धरा से , इकठ्ठा करलो नीर 
वर्षा काल में क्यों रहे , जलाभाव की पीर 
बारिश से खुश हुए , सब रिते खलिहान 
खेत मस्त गाने लगे , फसलें हुई जवान 
शिवजी को भाये बहुत , सुन्दर श्रावण मास 
कन्या गाये गीत सावन के , होता सुन एहसास 
बूंद - बूंद संचित करे , यह तो है उपहार 
ईश्वर करे हर कदम हम पर ये उपकार 
जल ही जीवन है , जल ही संसार 
जल बीन मानव की रहे जिंदगी बेकार 

     ( धरती करे श्रगांर )

©Indra jeet #तप्त धरा की देह से हुआ बारिश का प्रिय मिलन 
खुश होकर वो कर रही , प्रति दिन हरिहर श्रृंगार 
कहां गर्मी की वो तपन , धदकता धरा का वो दौर 
अब सावन मगन आँगन में , नाच रहे मन मोर 
गीत मस्त हो गा रहे धरती के भगवान 
वर्षा के आते ही , खुश हुआ सबसे अधिक किसान 
मेघ कहे धरा से , इकठ्ठा करलो नीर 
वर्षा काल में क्यों रहे , जलाभाव की पीर
तप्त धरा की देह से हुआ बारिश का प्रिय मिलन 
खुश होकर वो कर रही , प्रति दिन हरिहर श्रृंगार 
कहां गर्मी की वो तपन , धदकता धरा का वो दौर 
अब सावन मगन आँगन में , नाच रहे मन मोर 
गीत मस्त हो गा रहे धरती के भगवान 
वर्षा के आते ही , खुश हुआ सबसे अधिक किसान 
मेघ कहे धरा से , इकठ्ठा करलो नीर 
वर्षा काल में क्यों रहे , जलाभाव की पीर 
बारिश से खुश हुए , सब रिते खलिहान 
खेत मस्त गाने लगे , फसलें हुई जवान 
शिवजी को भाये बहुत , सुन्दर श्रावण मास 
कन्या गाये गीत सावन के , होता सुन एहसास 
बूंद - बूंद संचित करे , यह तो है उपहार 
ईश्वर करे हर कदम हम पर ये उपकार 
जल ही जीवन है , जल ही संसार 
जल बीन मानव की रहे जिंदगी बेकार 

     ( धरती करे श्रगांर )

©Indra jeet #तप्त धरा की देह से हुआ बारिश का प्रिय मिलन 
खुश होकर वो कर रही , प्रति दिन हरिहर श्रृंगार 
कहां गर्मी की वो तपन , धदकता धरा का वो दौर 
अब सावन मगन आँगन में , नाच रहे मन मोर 
गीत मस्त हो गा रहे धरती के भगवान 
वर्षा के आते ही , खुश हुआ सबसे अधिक किसान 
मेघ कहे धरा से , इकठ्ठा करलो नीर 
वर्षा काल में क्यों रहे , जलाभाव की पीर