पठन- पाठन सभ्यताओं के हजारों वर्ष पार चुके हैं हम लेकिन अभी तक सीखने की सरल और सर्वमान्य विधा नहीं तय कर पाये। क्या, कैसे और कितना सीखना सिखाना है,इस ओर किये जाने वाले प्रयोग और प्रयास या तो अपर्याप्त हैं या फिर खानापूर्ति।हर वर्ष पाठ्यक्रम और पुस्तकों को बदलना पड़ रहा है। यह विचारणीय है कि कितने गंभीर हैं हम सब! ©Kishor Taragi RAJ #Hindidiwas