शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है! मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है ! (कैप्शन देखें) शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है! मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है ! : प्रेम....... सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना । पता है प्रेम क्या है ?