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शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है प्रेम प्रेम

शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है !

(कैप्शन देखें) शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है !
:
प्रेम.......
सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना ।
पता है प्रेम क्या है ?
शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है !

(कैप्शन देखें) शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है !
:
प्रेम.......
सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना ।
पता है प्रेम क्या है ?