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पल्लव की डायरी उम्र मेरी कब ढल गयी खुद ही में खोय

पल्लव की डायरी
उम्र मेरी कब ढल गयी

खुद ही में खोयी रही

मेरी वेफुफी आज शर्मिंदी भरी है

जमाने की आवाज सुनी ही नही है

एक साथी चुनने की अहमियत मैने दी ही नही

चंचलता और गुमान इतना था कि

खुद से बड़ा किसी को समझा ही नही

आज अहसास हुआ खुद को हकीकत का

तब मुँह छिपाने के अलावां कुछ बचा ही नही
                                                प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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