मुझे बेड़ियों में जकड़ ना नहीं आता भागे कोई मुझसे भी तेज इसलिए ठहरना नहीं आता यूं तो मुकम्मल खुशियां हर किसी के हिस्से नहीं आती पर अधूरे पन के साथ मुझे जीना नहीं आता छोड़कर कोशिश खुद को पूरा करने की कट जाएगी ऐसी ही जिंदगी ऐसा बहाना नहीं आता मुकम्मल करके छोडूंगी मैं अपने हिस्से की खुशी क्योंकि अपने अरमानों को मुझे दबाना नहीं आता तोड़ डालूंगी मैं हर उस बेड़ी को जो कहे नारी को खुले आसमान में उड़ना नहीं आता ©Farah Naz my lyf my rules