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खुद से बिछड़ता जा रहा हूँ मै अपने हिस्से कि तिजारत

खुद से बिछड़ता जा रहा हूँ मै
अपने हिस्से कि तिजारत से घबरा रहा हुँ मै 
खुद को समेटना मुश्किल हो गया है 
कुछ इस कदर बिखरता जा रहा हूँ मै
दिल और दिमाग पे खुद का काबू नही रहता 
कुछ इस कदर गुमराह होता जा रहा हूँ मै
कमबख्त जिन्दगी इस कदर रुठी हुई है मुझसे 
जिन्दा हुँ फिर भी जिन्दगी तलाश कर रहा हूँ मै
मेरे गुनाह से रुबरु तो करा मेरे खुदा ये कैसा इम्तिहान दे रहा हूँ मै
हर रोज ढलती शाम के साये में बैठा सोचता हूँ 
      क्या जिन्दा हूँ मै क्या जिन्दा हूँ मै ...........................

©Ashutosh Tiwari क्या जिंदा हूं मैं
खुद से बिछड़ता जा रहा हूँ मै
अपने हिस्से कि तिजारत से घबरा रहा हुँ मै 
खुद को समेटना मुश्किल हो गया है 
कुछ इस कदर बिखरता जा रहा हूँ मै
दिल और दिमाग पे खुद का काबू नही रहता 
कुछ इस कदर गुमराह होता जा रहा हूँ मै
कमबख्त जिन्दगी इस कदर रुठी हुई है मुझसे 
जिन्दा हुँ फिर भी जिन्दगी तलाश कर रहा हूँ मै
मेरे गुनाह से रुबरु तो करा मेरे खुदा ये कैसा इम्तिहान दे रहा हूँ मै
हर रोज ढलती शाम के साये में बैठा सोचता हूँ 
      क्या जिन्दा हूँ मै क्या जिन्दा हूँ मै ...........................

©Ashutosh Tiwari क्या जिंदा हूं मैं