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ग़ज़ल:- असलियत-ए-जमाना ये ज़ख्म-ओ-दर्द-ओ-सितम को द

ग़ज़ल:- असलियत-ए-जमाना
ये ज़ख्म-ओ-दर्द-ओ-सितम को दिल में छुपाकर रखो,
ये अधूरी दास्तां-ए-मोहब्बत को जहां से बचाकर रखो।

यह ज़माना शौक रखता है महज़ फ़ालतू तमाशा देखने का,
बेहतर यही है की अपने सारे राज़ को राज़ बनाकर रखो।

जानता हूं बहुत मुश्किल है संभालना अपने जज्बातों को,
मगर बात इज्ज़त की है तो इज्ज़त को बचाकर रखो।

उनके गंदी आदतों में शुमार है छिड़कना जले पर नमक,
तुम तो अपने ज़ख्म ही सही मगर उनसे छुपाकर रखो।

क्या मिलेगा सिवाय दर्द के इस नुमाइशी-ए-इश्क से,
यह मतलबी दुनिया है यह बात खुद को समझाकर रखो।

यह ज़माना देता है सिर्फ़-ओ-सिर्फ़ झूठी तसल्लीयां,
नहीं लेनी है ऐसी तसल्लियां ये कसम खाकर रखो।

"राही" वाक़िफ है इस असलियत-ए-ज़माना से बहुत मगर,
नादानी में हो जाती है गलतियां यह दिल को बताकर रखो।  #असलियत_ए_जमाना #दास्तां_ए_मोहब्बत  #तमाशा  #शुमार #नुमाइशी_ए_इश्क #मतलबी_दुनिया #तसल्ली #philosophyoflove
ग़ज़ल:- असलियत-ए-जमाना
ये ज़ख्म-ओ-दर्द-ओ-सितम को दिल में छुपाकर रखो,
ये अधूरी दास्तां-ए-मोहब्बत को जहां से बचाकर रखो।

यह ज़माना शौक रखता है महज़ फ़ालतू तमाशा देखने का,
बेहतर यही है की अपने सारे राज़ को राज़ बनाकर रखो।

जानता हूं बहुत मुश्किल है संभालना अपने जज्बातों को,
मगर बात इज्ज़त की है तो इज्ज़त को बचाकर रखो।

उनके गंदी आदतों में शुमार है छिड़कना जले पर नमक,
तुम तो अपने ज़ख्म ही सही मगर उनसे छुपाकर रखो।

क्या मिलेगा सिवाय दर्द के इस नुमाइशी-ए-इश्क से,
यह मतलबी दुनिया है यह बात खुद को समझाकर रखो।

यह ज़माना देता है सिर्फ़-ओ-सिर्फ़ झूठी तसल्लीयां,
नहीं लेनी है ऐसी तसल्लियां ये कसम खाकर रखो।

"राही" वाक़िफ है इस असलियत-ए-ज़माना से बहुत मगर,
नादानी में हो जाती है गलतियां यह दिल को बताकर रखो।  #असलियत_ए_जमाना #दास्तां_ए_मोहब्बत  #तमाशा  #शुमार #नुमाइशी_ए_इश्क #मतलबी_दुनिया #तसल्ली #philosophyoflove