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यह तस्वीर बेहद दर्दनाक है। ये दोनों मजदूर सूरत (गु

 यह तस्वीर बेहद दर्दनाक है।
ये दोनों मजदूर सूरत (गुजरात) की एक कपड़ा मिल में काम करते थे। लॉकडाउन में मिल बंद हो गई। बेरोजगारी में लाचार भूखे प्यास ये ट्रक में लद कर अपने गांव लौट रहे थे। रास्ते में थकावट, डिहाइड्रेशन और भूख से एक की हालत खराब हो गई, उसे बुखार होने लगा, चक्कर आने लगे और उल्टी महसूस होने लगी। अफवाह के आतंक में ट्रक में बैठे दूसरे मजदूरों ने कोरोना-कोरोना कहकर उसे जबरदस्ती उतरवा दिया। साथ में चल रहा उसका दोस्त उसे अकेला नहीं छोड़ा, वह भी उतर गया।
रास्ते में आती गाड़ियों से रो-रो कर उसनें मदद मांगी, एक दरियादिल आदमी ने उसे हास्पिटल पहुंचाया। लेकिन तबियत इतनी खराब हो चुकी थी कि हास्पिटल में भी उसे बचाया नहीं जा सका। मरने वाला मजदूर हिन्दू था और अंतिम दम तक उसका साथ देने वाला मजदूर मुस्लिम है।
यही भाई चारा है और यही मानवता है, जिसे व्यवस्था खत्म कर नफ़रत बोए जा रही है।

Kailash Prakash Singh जी की वॉल से साभार प्राप्त 

(तस्वीर स्थानीय व्यक्ति द्वारा ली गई है)
 यह तस्वीर बेहद दर्दनाक है।
ये दोनों मजदूर सूरत (गुजरात) की एक कपड़ा मिल में काम करते थे। लॉकडाउन में मिल बंद हो गई। बेरोजगारी में लाचार भूखे प्यास ये ट्रक में लद कर अपने गांव लौट रहे थे। रास्ते में थकावट, डिहाइड्रेशन और भूख से एक की हालत खराब हो गई, उसे बुखार होने लगा, चक्कर आने लगे और उल्टी महसूस होने लगी। अफवाह के आतंक में ट्रक में बैठे दूसरे मजदूरों ने कोरोना-कोरोना कहकर उसे जबरदस्ती उतरवा दिया। साथ में चल रहा उसका दोस्त उसे अकेला नहीं छोड़ा, वह भी उतर गया।
रास्ते में आती गाड़ियों से रो-रो कर उसनें मदद मांगी, एक दरियादिल आदमी ने उसे हास्पिटल पहुंचाया। लेकिन तबियत इतनी खराब हो चुकी थी कि हास्पिटल में भी उसे बचाया नहीं जा सका। मरने वाला मजदूर हिन्दू था और अंतिम दम तक उसका साथ देने वाला मजदूर मुस्लिम है।
यही भाई चारा है और यही मानवता है, जिसे व्यवस्था खत्म कर नफ़रत बोए जा रही है।

Kailash Prakash Singh जी की वॉल से साभार प्राप्त 

(तस्वीर स्थानीय व्यक्ति द्वारा ली गई है)