ढाई अक्षर प्रेम के, जो समझ गया उसे वो दुनिया से परे ह अपनी दुनिया में जीता ह वो मोह माया से दूर अपनी मस्ती में जिये ह कुछ इस कदर घुल गए ह एक दूसरे में हर संकट से परे ह ये मीठा रस पिए ह इश्क़ का फिर किस बात की चिंता किये ह B@++