आधी ज़िन्दगी बीती बेवकूफी में कुछ लोग बनाते रहे कुछ मै बनता रहा सोचा राबता ना होगा इश्क़ से अब पर कभी इश्क मेरे घर आता राहा कभी मै उसका मेहमान बनता राहा खोया जब सब तो समझ आया कुछ चेहरे कम होते गए कुछ मेरा विश्वास बदलता राहा छोड़ दी गुज़ारिश भी अब उनसे जिनके लिए मैं खाश ना राहा सोचा छोड़ देता ज़िन्दगी का ये सफर कभी मुझे ज़हर ना मिला कभी फंदा कम पड़ता राहा