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इस दौरान डोभाल ने विमान में घुसकर आतंकियों के सामन

इस दौरान डोभाल ने विमान में घुसकर आतंकियों के सामने भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा भी लगाया। लेकिन अफसोस विमान में बैठे लोग खामोश रहे। यह समझा जा सकता है कि विमान में बैठे लोग खामोश क्यों रहे????
अजीत डोभाल मतलब सफलता❗

आईबी के तत्कालीन स्पेशल डायरेक्टर अजीत डोभाल ने कंधार में विपरीत हालात में भी मैक्सिमम गेन इन मिनिमम अपॉर्चुनिटी कर दिखाया।

आतंकी किसी भी वक्त विमान में बनाए गए बंधक सभी लोगों की हत्या कर सकते थे। क्योंकि वह सभी फिदायीन थे और उन्हें मौत का डर नहीं था।

आतंकी यात्री रूपेश कात्याल की हत्या कर चुके थे।‌ऐसी हालत में अजीत डोभाल को सरकार ने 190 लोगों को बचाने के लिए भेजा। क्योंकि लोगों को लग रहा था कि सरकार कुछ कर हीं नहीं रही है। ऊपर से देश में राजनीतिक खेल सभी दल अपने-अपने हिसाब से खेल रहे थे। जबकि ऐसे वक्त राष्ट्र को एक साथ खड़ा होना चाहिए था।

अजीत डोभाल को जल्द से जल्द कदम उठाने थे और वह उन्होंने कर दिखाया। आतंकियों ने तीन बड़ी मांगे डोभाल के सामने रखी थीं।
आतंकियों की पहली मांग - 36 आतंकवादियों को छोड़ा जाए।आतंकियों की दूसरी मांग - भारत सरकार उन्हें 1400 करोड़ रूपए दे।
आतंकियों की तीसरी मांग‌ - आतंकी सज्जाद अफगानी की लाश देने की मांग की थी।ISI️ व आतंकियों की मांद में डोभाल का
भाल ने आतंकियों की मांग में रहकर भी बिना भय की उनसे बातचीत की विमान में जाकर लोगों से बातचीत की।

जो लोग यह कहते हैं कि मसूद अजहर को डोभाल लेकर गए उन्हें सामान्य ज्ञान का सामान्य नॉलेज तक नहीं है। रही बात मौलाना मसूद अजहर की रिहाई की तो उसे भारत सरकार को मजबूरी में छोड़ना पड़ा था। क्योंकि 190 भारतीयों की जान को खतरा था। अगर राष्ट्र के लोग एक साथ खड़े होकर आतंकियों के आगे नहीं झुकने की बात करते तो आतंकियों को बहुत बड़ा संदेश जाता और हम भी गम से बाहर निकलने में कामयाब होते।

पाकिस्तान तालिबानी आतंकियों के साथ बैठकर उसके पक्ष में बात कर रहा था। और हम पर जल्द से जल्द मांग मानने का दबाव बना रहा था। इसके लिए कई बार आईएसआई के लोग भारतीय मीडिया में चल रही राजनीतिक दलों के नेताओं और देश के लोगों की बेचैनी भरी खबरों को देख कर जल्द से जल्द आतंकियों की मांग मानने की नसीहत दे रहे थे।

कंधार में बंधकों की रिहाई, उस अफगानिस्तान में रहकर कराई जब तालिबान का शासन था।

इतना होने के बावजूद डोभाल ने तालिबानी आतंकियों को 36 की बजाय सिर्फ 3 आतंकवादियों को छोड़ने की बात कही।

अपने देश के 1400 करोड़ बचाए।

तारीफ डोभाल की इस लिए भी करनी चाहिए क्योंकि तालिबानी आतंकी और कमांडर के चंगुल से सभी यात्रियों को छुड़ाया। डोभाल जो किया उसे इतिहास में याद रखा जाएगा।

ऑपरेशन करते तो क्या होता ?

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां तालिबान के साथ पाकिस्तान भी था और हम कोई भी ऑपरेशन करते हैं तो वह हमारा विमान पाकिस्तान के ऊपर से नहीं जाने देता। दूसरी तरफ आतंकी फिदायीन थे। ऐसी हालत में 190 भारतीय नागरिक मारे जाते। तब तो अटल सरकार का देश के नेता जीना मुहाल कर देते।

मौलाना मसूद अजहर को इसके पहले भी दो बार छुड़ाने की कोशिश है पाकिस्तानी आतंकवादी कर चुके थे। एक बार जेल पर हमला करके और दूसरी बार कश्मीर में विदेशी नागरिक की हत्या कर लेकिन भारत सरकार ने आतंकियों की किसी भी धमकी की परवाह नहीं की।

भूल गये डॉक्टर रुबिया सईद किडनैपिंग कांड?

देश के तत्कालीन गृह मंत्री और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी डॉ रुबिया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया इसके एवज में कितने आतंकी छोड़े गए क्या इस पर किसी दल का कोई नेता बोलता है? क्योंकि बोलने से उन्हें डर है की वोट में कमी आएगी।

अब आप खुद ही सोचिए डोभाल की वीरता पर भी इस देश में संदेह करने वाले लोग हैं जो देश का पीएम बनने का ख्वाब देख रहे हैं।

इसकी आलोचना करने वालों को देश की सौगंध खानी चाहिए ना कि सत्ता हथियाने के लिए कुछ भी बोलने की घटिया प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। क्या ऐसे लोगों में हिम्मत है, या यूं ही पोगो टाइप प्रवचन देते रहेंगे? ऐसे लोगों से देश को कोई फर्क नहीं पड़ता जो कुछ भी बोलें। लेकिन देश को फर्क पड़ता है वैसे लोगों से जो देश के लिए जान देते हैं। देश को अपनी जान से ज्यादा समझते हैं। उन जवानों और उन शहीदों के परिजनों से भी हमें सीखना चाहिए जो इस देश के लिए जीते हैं।

कब पीएंगे शर्म का एक घूंट सुबह की चाय के साथ ?

क्या इसके लिए सुबह की हर चाय के पहले हमें शर्म का एक घूंट नहीं पीना चाहिए? ‌ जरा सोचिए देश के उन वीर बेटे-बेटियों और उनके परिवारों के लिए जो सिर पर कफन बांध कर देश की संप्रभुता की रक्षा करते हैं। सीमा पर पत्थरों के बीच पहाड़ों और बर्फबारी के बीच, आंधी में तूफ़ान में डटे रहते हैं ताकि हम घर में चैन की नींद ले सकें। गर्मी में खुद लू के थपेड़े खाकर हमें ठंडी हवाओं और ऐसी की सनसनाती हवाओं के बीच आराम से सोने और पिज्जा खाने का मौका देते हैं।लेकिन हम कितने निकृष्ट हैं कि जब आतंकवाद से लड़ने की बात या देश की इज्जत की बात आती है तो हर बात में सियासती सौदेबाजी की गंध के लिए अपनी नाकअंदर तक घुसेड़ देते हैं‌। जब कीचड़ लग जाता है तो मुंह बंद कर लेते हैं?????

आतंकवाद से मुकाबले की बजाए सरकार पर दबाव❓

सवाल यह है कि तब किसी राजनीतिक दल ने यह क्यों नहीं कहा कि सरकार को आतंकियों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए?? क्योंकि देश सबसे पहले है। लेकिन अपने देश की राजनीति हमेशा इतनी घटिया रही है कि एक तरफ आतंकवाद को खत्म करने के लिए सरकार एक्शन लेती है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दल सबूत मांग कर सरकार को कोसते हैं। वहीं मीडिया के मंच का इस्तेमाल कर कुछ लोग सरकार पर वॉर मॉगरिंग का आरोप लगाते हैं। लेकिन उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद हर किसी के लिए नासूर बना है। आखिर एक न एक दिन उसका खात्मा करना पड़ेगा और नहीं तो रोज तिल तिल के मरना पड़ेगा।
 #NojotoQuote अजीत डोभाल का क्यों किया चुनाव भारतीय विमान हाईजैक में शामिल था
#nojoto#
इस दौरान डोभाल ने विमान में घुसकर आतंकियों के सामने भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा भी लगाया। लेकिन अफसोस विमान में बैठे लोग खामोश रहे। यह समझा जा सकता है कि विमान में बैठे लोग खामोश क्यों रहे????
अजीत डोभाल मतलब सफलता❗

आईबी के तत्कालीन स्पेशल डायरेक्टर अजीत डोभाल ने कंधार में विपरीत हालात में भी मैक्सिमम गेन इन मिनिमम अपॉर्चुनिटी कर दिखाया।

आतंकी किसी भी वक्त विमान में बनाए गए बंधक सभी लोगों की हत्या कर सकते थे। क्योंकि वह सभी फिदायीन थे और उन्हें मौत का डर नहीं था।

आतंकी यात्री रूपेश कात्याल की हत्या कर चुके थे।‌ऐसी हालत में अजीत डोभाल को सरकार ने 190 लोगों को बचाने के लिए भेजा। क्योंकि लोगों को लग रहा था कि सरकार कुछ कर हीं नहीं रही है। ऊपर से देश में राजनीतिक खेल सभी दल अपने-अपने हिसाब से खेल रहे थे। जबकि ऐसे वक्त राष्ट्र को एक साथ खड़ा होना चाहिए था।

अजीत डोभाल को जल्द से जल्द कदम उठाने थे और वह उन्होंने कर दिखाया। आतंकियों ने तीन बड़ी मांगे डोभाल के सामने रखी थीं।
आतंकियों की पहली मांग - 36 आतंकवादियों को छोड़ा जाए।आतंकियों की दूसरी मांग - भारत सरकार उन्हें 1400 करोड़ रूपए दे।
आतंकियों की तीसरी मांग‌ - आतंकी सज्जाद अफगानी की लाश देने की मांग की थी।ISI️ व आतंकियों की मांद में डोभाल का
भाल ने आतंकियों की मांग में रहकर भी बिना भय की उनसे बातचीत की विमान में जाकर लोगों से बातचीत की।

जो लोग यह कहते हैं कि मसूद अजहर को डोभाल लेकर गए उन्हें सामान्य ज्ञान का सामान्य नॉलेज तक नहीं है। रही बात मौलाना मसूद अजहर की रिहाई की तो उसे भारत सरकार को मजबूरी में छोड़ना पड़ा था। क्योंकि 190 भारतीयों की जान को खतरा था। अगर राष्ट्र के लोग एक साथ खड़े होकर आतंकियों के आगे नहीं झुकने की बात करते तो आतंकियों को बहुत बड़ा संदेश जाता और हम भी गम से बाहर निकलने में कामयाब होते।

पाकिस्तान तालिबानी आतंकियों के साथ बैठकर उसके पक्ष में बात कर रहा था। और हम पर जल्द से जल्द मांग मानने का दबाव बना रहा था। इसके लिए कई बार आईएसआई के लोग भारतीय मीडिया में चल रही राजनीतिक दलों के नेताओं और देश के लोगों की बेचैनी भरी खबरों को देख कर जल्द से जल्द आतंकियों की मांग मानने की नसीहत दे रहे थे।

कंधार में बंधकों की रिहाई, उस अफगानिस्तान में रहकर कराई जब तालिबान का शासन था।

इतना होने के बावजूद डोभाल ने तालिबानी आतंकियों को 36 की बजाय सिर्फ 3 आतंकवादियों को छोड़ने की बात कही।

अपने देश के 1400 करोड़ बचाए।

तारीफ डोभाल की इस लिए भी करनी चाहिए क्योंकि तालिबानी आतंकी और कमांडर के चंगुल से सभी यात्रियों को छुड़ाया। डोभाल जो किया उसे इतिहास में याद रखा जाएगा।

ऑपरेशन करते तो क्या होता ?

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां तालिबान के साथ पाकिस्तान भी था और हम कोई भी ऑपरेशन करते हैं तो वह हमारा विमान पाकिस्तान के ऊपर से नहीं जाने देता। दूसरी तरफ आतंकी फिदायीन थे। ऐसी हालत में 190 भारतीय नागरिक मारे जाते। तब तो अटल सरकार का देश के नेता जीना मुहाल कर देते।

मौलाना मसूद अजहर को इसके पहले भी दो बार छुड़ाने की कोशिश है पाकिस्तानी आतंकवादी कर चुके थे। एक बार जेल पर हमला करके और दूसरी बार कश्मीर में विदेशी नागरिक की हत्या कर लेकिन भारत सरकार ने आतंकियों की किसी भी धमकी की परवाह नहीं की।

भूल गये डॉक्टर रुबिया सईद किडनैपिंग कांड?

देश के तत्कालीन गृह मंत्री और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी डॉ रुबिया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया इसके एवज में कितने आतंकी छोड़े गए क्या इस पर किसी दल का कोई नेता बोलता है? क्योंकि बोलने से उन्हें डर है की वोट में कमी आएगी।

अब आप खुद ही सोचिए डोभाल की वीरता पर भी इस देश में संदेह करने वाले लोग हैं जो देश का पीएम बनने का ख्वाब देख रहे हैं।

इसकी आलोचना करने वालों को देश की सौगंध खानी चाहिए ना कि सत्ता हथियाने के लिए कुछ भी बोलने की घटिया प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। क्या ऐसे लोगों में हिम्मत है, या यूं ही पोगो टाइप प्रवचन देते रहेंगे? ऐसे लोगों से देश को कोई फर्क नहीं पड़ता जो कुछ भी बोलें। लेकिन देश को फर्क पड़ता है वैसे लोगों से जो देश के लिए जान देते हैं। देश को अपनी जान से ज्यादा समझते हैं। उन जवानों और उन शहीदों के परिजनों से भी हमें सीखना चाहिए जो इस देश के लिए जीते हैं।

कब पीएंगे शर्म का एक घूंट सुबह की चाय के साथ ?

क्या इसके लिए सुबह की हर चाय के पहले हमें शर्म का एक घूंट नहीं पीना चाहिए? ‌ जरा सोचिए देश के उन वीर बेटे-बेटियों और उनके परिवारों के लिए जो सिर पर कफन बांध कर देश की संप्रभुता की रक्षा करते हैं। सीमा पर पत्थरों के बीच पहाड़ों और बर्फबारी के बीच, आंधी में तूफ़ान में डटे रहते हैं ताकि हम घर में चैन की नींद ले सकें। गर्मी में खुद लू के थपेड़े खाकर हमें ठंडी हवाओं और ऐसी की सनसनाती हवाओं के बीच आराम से सोने और पिज्जा खाने का मौका देते हैं।लेकिन हम कितने निकृष्ट हैं कि जब आतंकवाद से लड़ने की बात या देश की इज्जत की बात आती है तो हर बात में सियासती सौदेबाजी की गंध के लिए अपनी नाकअंदर तक घुसेड़ देते हैं‌। जब कीचड़ लग जाता है तो मुंह बंद कर लेते हैं?????

आतंकवाद से मुकाबले की बजाए सरकार पर दबाव❓

सवाल यह है कि तब किसी राजनीतिक दल ने यह क्यों नहीं कहा कि सरकार को आतंकियों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए?? क्योंकि देश सबसे पहले है। लेकिन अपने देश की राजनीति हमेशा इतनी घटिया रही है कि एक तरफ आतंकवाद को खत्म करने के लिए सरकार एक्शन लेती है तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दल सबूत मांग कर सरकार को कोसते हैं। वहीं मीडिया के मंच का इस्तेमाल कर कुछ लोग सरकार पर वॉर मॉगरिंग का आरोप लगाते हैं। लेकिन उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद हर किसी के लिए नासूर बना है। आखिर एक न एक दिन उसका खात्मा करना पड़ेगा और नहीं तो रोज तिल तिल के मरना पड़ेगा।
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