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उल्फतों के शहर में हम भी, गमों का बोझ उठाए हुवे है

उल्फतों के शहर में हम भी,
गमों का बोझ उठाए हुवे हैं,
हमने छोड़े हैं दिल के रिश्ते,
इश्क ए जख्म खाए हुवे हैं,
लोग अब भी है ऐसे तकते,
जैसे हम दौलत लुटाए हुवे हैं,
आज ही हमने समझे हैं रिश्ते,
आज ही इंशा परखे हुवे हैं,
उल्फतों के शहर में हम भी,
गमों का बोझ उठाए.........! गमों का बोझ उठाए..........!
उल्फतों के शहर में हम भी,
गमों का बोझ उठाए हुवे हैं,
हमने छोड़े हैं दिल के रिश्ते,
इश्क ए जख्म खाए हुवे हैं,
लोग अब भी है ऐसे तकते,
जैसे हम दौलत लुटाए हुवे हैं,
आज ही हमने समझे हैं रिश्ते,
आज ही इंशा परखे हुवे हैं,
उल्फतों के शहर में हम भी,
गमों का बोझ उठाए.........! गमों का बोझ उठाए..........!