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शुक्रिया तेरा शब-ए-महताब तेरे आने से स्याह आसमान

शुक्रिया तेरा शब-ए-महताब 
तेरे आने से स्याह आसमान में 
रौनक़ तो बढ़ी ,,
वर्ना ये महफ़िल-ए-जज़्बात 
अधूरी रहती,
ना चाँद जगमगाता,न धरा पर 
रोशनी होती,
ना मैं अपने महबूब का चेहरा 
गली में आते जाते देखती।
और तो और दरीचे मैं बैठी बस 
तेरा इंतजार करती रहती।
ना कान्हा की मुरलिया सुनने 
को मिलती ,न राधा नाचती। 
ना उन का प्रेम भाव उभरता 
न गोपियां मटकती।
ए ..सुन न महताब, तुमको 
पाने के लिए, तुम्हारी चाँदनी 
भी ऐसे ही तरसती।
तुम्हें पता है महताब...
तुम्हें आगोश में लेकर तुम्हारी 
चाँदनी कितना खुश होती।
हर्ष उल्लास में वह अपने बदन
को भिगो लेती।
जो नूर बन कर खुदा के दर से 
नेमत बरसाती ।
प्रेम का...
उस प्रेम के नूर को पाने के लिए 
धरा पर सारी प्रकृति है तरसती।

स्वरचित रचना दीप्ति गर्ग🙏

©Deepti Garg
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Deepti Garg

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