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*कहाकही* नदी कहती, मैं कल कल ही बहती गर तुमने जो म

*कहाकही*
नदी कहती, मैं कल कल ही बहती
गर तुमने जो मुझको बांधा न होता।

पर्वत कहता, मैं अचल ही रहता
गर मुझपर रास्तों को तराशा न होता।

हवा कहती, मैं शीतल ही बहती
गर मुझको मलीन किया न होता।

जंगल कहते, हम घनेरे ही रहते
गर तुमने वृक्षों को काटा न होता।

सागर कहता, मैं उग्र न होता
गर गंदगी का बोझ डाला न होता।

मानवता कहती, हम सब एक है
गर कुछ दानवों ने बांटा न होता।

वसुधा कहती दुनिया अमंगल ही होती
गर मैंने इसे अमृत से सींचा न होता।

स्त्री कहती ये दुनिया खंडहर ही होती
गर गृहस्थी का बोझ हमने उठाया न होता। *कहाकही*

नदी कहती, मैं कल कल ही बहती
गर तुमने जो मुझको बांधा न होता।

पर्वत कहता, मैं अचल ही रहता
गर मुझपर रास्तों को तराशा न होता।
*कहाकही*
नदी कहती, मैं कल कल ही बहती
गर तुमने जो मुझको बांधा न होता।

पर्वत कहता, मैं अचल ही रहता
गर मुझपर रास्तों को तराशा न होता।

हवा कहती, मैं शीतल ही बहती
गर मुझको मलीन किया न होता।

जंगल कहते, हम घनेरे ही रहते
गर तुमने वृक्षों को काटा न होता।

सागर कहता, मैं उग्र न होता
गर गंदगी का बोझ डाला न होता।

मानवता कहती, हम सब एक है
गर कुछ दानवों ने बांटा न होता।

वसुधा कहती दुनिया अमंगल ही होती
गर मैंने इसे अमृत से सींचा न होता।

स्त्री कहती ये दुनिया खंडहर ही होती
गर गृहस्थी का बोझ हमने उठाया न होता। *कहाकही*

नदी कहती, मैं कल कल ही बहती
गर तुमने जो मुझको बांधा न होता।

पर्वत कहता, मैं अचल ही रहता
गर मुझपर रास्तों को तराशा न होता।
bpawar8645130918033

B Pawar

New Creator

*कहाकही* नदी कहती, मैं कल कल ही बहती गर तुमने जो मुझको बांधा न होता। पर्वत कहता, मैं अचल ही रहता गर मुझपर रास्तों को तराशा न होता। #hindiquotes #hindipoetry #duniya #सृष्टि #hindipanktiyaan #whosmi #kahakahi