घड़ी की भी एक अपनी कहानी है, चलती है रोज पर मंजिल पुरानी है। कभी न बदले मंजिल अपनी, जिसकी नित संघर्ष निशानी है। वक्त बदलते ही लोगों की घडियां बदल गयी, पर बदल सकी न कर्म वो अपना जैसे दुनिया बदल गयी। सबमें जीवन एक समझकर सबको समय एक बतलाती है। ऊँच नीच सब भेद मिटाकर सबका साथ निभाती है। #घड़ी की भी अपनी एक कहानी है।