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टूटे फूटे सपने सारे समेटके मै आई हू... दूर तेरे आच

टूटे फूटे सपने सारे समेटके मै आई हू...
दूर तेरे आचल से माॅ  कूछ उम्मीद लेके आयी हू..

रास्ता ईतना आसान नही पर ,
चलना अब मैने सिख लिया..
गिर पडू जो राह मे तो खूद मरहम लगाना  अब सिख लिया..

आती है जब याद तेरी माॅ, 
घूट घूट के मै रो लेती हू...
दूर तेरी ऑचल से माॅ  कूछ उम्मीद लेकर आयी हू...

कूछ अपने है यहाॅ  कूछ बहोत पराये..
कूछ सच्चे है कूछ बहोत सयाने...
पर हर शखसियत अब मै एक सिख घर ले जाती हू..
दूर तेरी ऑचल से माॅ  कूछ उम्मीद लेकर आयी हू...

तनखा थोडी कम है मेरी ..
पर तेरी खुशिया अब हम खरीद लेंगे..
अब हर दिवाली पें नये कपडे और कुछ मिठाईया भी हम खरिद लेंगे..
पापा की वो बंद घडी
उसे सूधार भी मै ले आई हू..
दूर तेरे आचल से माॅ  कूछ उम्मीद लेके आयी हू..

और करूंगी मेहनत थोडी 
तो नया घरभी अब हम बनवा लेंगे..
गिरवी पडे जो गहने सारे 
अब साहूकार से भी हम छूडवा लेंगे..
कलाई थोडी नाजूक है पर 
पर सुनहरे मै ले आई हू ..
दूर तेरे आचल से माॅ  कूछ उम्मीद लेकर आयी हू..

©nalini turare
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when you 1st time leave your home for Job..

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