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पंछी हर शाम आसमान पर उड़ते देखा था।

पंछी     हर शाम आसमान पर उड़ते देखा था।                                                     
                                       छोटी चिड़िया की चहकती झुंड को
आती है अभी बड़ी मुश्किल से नजर।                                                 
                                 तलाशो जब कोसों दूर वीरानीयों पर
कहते थे बुजुर्ग हमें बनाती है यह जहां घर।                                           
                               खुशकिस्मती रहती है वहां जीवन भर
 डर लगता था उसे लोगों तब भी।                                                        
                                  बनाता था घर बैठक के छप्पर पर सभी
आज के बच्चों को पूछो तो चित्र किताबों में।                                       
                                 दिखाकर कहेगा क्या है यह वही पंछी 
हमने तो घोंसलों में अंडों तक से खेला था।                                       
                             रख दिया था खेलकर फिर से वही 
क्या समझ पाए हो मैं बात कर रही हूं।                                             
                             नन्हे से प्यारे से गौरीया पक्षी की
विलुप्त होने की कगार पर है यह प्रजाति।                                        
                                          हम सब को बचाना इसको है बहुत जरूरी
रो पड़ी थी में पंखे से लगकर गोरिया ने।                                          
                                         उड़ने की शक्ति जब मेरे सामने खो दी थी
 कोशिश की बहुत पर पंखों को ना जोर पाई।                                   
                                       हाथ में मेरे उसने आखिरी सांस ली थी
बचाना होगा इससे हम सबको मिलकर।                                      
                                 खतरनाक चीजों से दूर रख कर
मुहिम एक दिल से चलाना होगा।                                                
                                                   ठंडी स्वच्छ जगहों पर दाना पानी रखना होगा
सुंदरता है पक्षी हमारी इस भूमि की।                                            
                                             गोरैया तो मानी जाती है घर की लक्ष्मी भी
Farah Naz, Joint Secretary ,EW

©Farah Naz #पंछी
#गोरिया 
#सेफगोरिया
पंछी     हर शाम आसमान पर उड़ते देखा था।                                                     
                                       छोटी चिड़िया की चहकती झुंड को
आती है अभी बड़ी मुश्किल से नजर।                                                 
                                 तलाशो जब कोसों दूर वीरानीयों पर
कहते थे बुजुर्ग हमें बनाती है यह जहां घर।                                           
                               खुशकिस्मती रहती है वहां जीवन भर
 डर लगता था उसे लोगों तब भी।                                                        
                                  बनाता था घर बैठक के छप्पर पर सभी
आज के बच्चों को पूछो तो चित्र किताबों में।                                       
                                 दिखाकर कहेगा क्या है यह वही पंछी 
हमने तो घोंसलों में अंडों तक से खेला था।                                       
                             रख दिया था खेलकर फिर से वही 
क्या समझ पाए हो मैं बात कर रही हूं।                                             
                             नन्हे से प्यारे से गौरीया पक्षी की
विलुप्त होने की कगार पर है यह प्रजाति।                                        
                                          हम सब को बचाना इसको है बहुत जरूरी
रो पड़ी थी में पंखे से लगकर गोरिया ने।                                          
                                         उड़ने की शक्ति जब मेरे सामने खो दी थी
 कोशिश की बहुत पर पंखों को ना जोर पाई।                                   
                                       हाथ में मेरे उसने आखिरी सांस ली थी
बचाना होगा इससे हम सबको मिलकर।                                      
                                 खतरनाक चीजों से दूर रख कर
मुहिम एक दिल से चलाना होगा।                                                
                                                   ठंडी स्वच्छ जगहों पर दाना पानी रखना होगा
सुंदरता है पक्षी हमारी इस भूमि की।                                            
                                             गोरैया तो मानी जाती है घर की लक्ष्मी भी
Farah Naz, Joint Secretary ,EW

©Farah Naz #पंछी
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#सेफगोरिया