मालूम नहीं कहां मंजिल मेरी, पर साथ तेरे गुजर जाता हूं मे। बहता रहता हूं तेरे सासों से, राही तेरे राह का लापता साहिल हूं मे।। कभी तूने ना देखा मुझे, पर तुझे हरदम देखता रहता हूं मे। कोई ना समझे मुझे मगर, तेरे होठों से बयां होता हूं मे।। गोर फर्माएगी तू मुझमें अगर, तेरे चारो तरफ बिखरा पड़ा हूं मेे। सितम दर सितम बतलाएंगे तुझको, तेरे खुश्बू से मीट जाता हूं मे।। ए जमाने गर दम है तो, दिखा जुदा करके हमे। कसम तेरी गलियों मे तूफान बनकर वापस लौटेंगे हम,मस्खोरो के नजरो से, सिद्दात से बचाएंगे तुम्हे।। सुरू कहां पे और ख़तम कहां पे ये तो नहीं जानता हूं मे, इतना जरूर कहा सकता ही कि , तुझ से ही मुकम्मल होता हूं मे। #midnightpoems #romantic_poetry #love #poetry #lovepoem