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छोड़ दिया साथ अहँकार का, अब ज़रा भी बचा गुरूर नहीं.

 छोड़ दिया साथ अहँकार का,
अब ज़रा भी बचा गुरूर नहीं..!
नज़दीकियाँ बढ़ रही हैं,
अब मंजिल दूर नहीं..!

बड़ी मुश्किल से आया हूँ सही राह पर,
मन से बड़ा कोई क्रूर नहीं..!
सँभाल लिया ख़ुद को हमने,
ज़माने का कसूर नहीं..!

कोई अपना है तो ख़ुश होगा,
तरक्की से भी हमारी..!
हारा वही ज़माने में जिसमें,
सकारात्मकता का सुरूर नहीं..!

गले लगाने के लिए अब,
करेंगे जी हुज़ूर नहीं..!
जलन भाव में जल जाना है जीवन,
उम्र के उच्च पड़ाव पर कोई हूर नहीं..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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