हे किताब क्यूं ? कभी कभी लगता है कोई नहीं है अपना,हे किताब! तू है बस मेरी पर तू भी मुझसे बोलती क्यूं नहीं? चुपचाप बैठी है कुछ बताती क्यूं नहीं? सभी रूठ गए हैं, लगता है तु समझाती क्यूं नहीं? मोन रहकर भी हंसाती तो कभी रुलाती है तू क्यूं? मुझे खुश करके तू उदास है क्यूं? किसी को बड़ा तो किसी को छोटा बनाकर तू वहीं रह जाती है क्यूं? दोस्ती का बादा कर के अकेला कर जाती है क्यूं? तू दोस्त बनाती नहीं , मुझे बनाने नहीं देती है पर क्यूं? प्यार किया है बस तुझ से तो तू निभाती क्यूं नहीं? तू भी इंसानों कि तरह आनलाइन जाकर दूर से तड़पा रही है क्यूं ? ©laltesh shan #Lovewithbooks #friendsforever #mybook