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देर रात शोरगुल से निंद खुल गई एक तो गरमी इतनी है क

 देर रात शोरगुल से निंद खुल गई एक तो गरमी इतनी है की वैसे ही निंद नही आती आसानी से और ये शोर, जैसे जले पे नमक छिडक रहा हो कोई ,अभी आंख लगी ही थी ,खैर उठे हम, उठना ही था देखें तो हो क्या रहा है।बाहर सामान आया है किसी का, घर बन रहा है शायद ,लगभग उतर ही गया है सब, इतमीनान हुआ अब सोते है, लेटे ही थे आकर कि आवाज आई ,अजी देख लेते बाहर की अपने घर के सामने सामान ना उतार दे हमने ऐसे देखा जैसे कच्चा ही खा जाएगे अभी और सो गए ।सुबह हुई देर से निंद खुली सारे काम जलदी में निपटाए आज जलदी जो जाना था ,तैयार होकर बाहर आए, बाहर का नजारा देखने के बाद जैसे रात के गुस्से को भी जगह मिल गई बाहर आने की ,सारी सडक पर रेत पडी थी हमारे घर के सामने भी ।किसका सामान है ये हम जोर से चिल्लाए सारा गुस्सा जो उतारना था हमे,हमारी आवाज सुनकर चाचाजी आ गए (मोहल्ले के बुजुर्ग है ,सब बहुत इज्जत करते हैं उनकी) बडी ही नम्र आवाज में हमसे पुछा बेटा क्या हुआ पहली बार इतने गुस्से में देख रहे है आपको ,ये सुनकर हमारा गुस्सा जाने कैसे गायब सा हो गया, हमने भी बडी शांती से सारी बात बता दी, सब सुनने के बाद बडी छोटी सी मुसकान आई उनके चेहरे पर और हमे समझाया गया कि पडोस मे घर बन रहा है, होता है, कोई जान कर किसी को परेशान नही करता नजरअन्दाज करना पडता है कभी -कभी, सब को परेशानी होती है सभी कर रहे है आप भी करो ,चलाना पडता है इतना तो ।सुनकर हमे भी समझ आ गया नाहक ही खफा हो रहे थे हम और इतना वक्त बरबाद कर दिया है हमने वो अलग, तुरंत ही बाईक निकाली, बडी मशक्कत के बाद सडक पार की, पर कर ली ।अब सारे रास्ते सोचते रहे की पहुंच कर क्या बोलना है दफ्तर पहुचें और सारे रास्ते जो याद किया वो नही बोल पाए,बस इतना ही कहा हमने की काम चल रहा है boss ने मुहल्ले का नाम पुछा और बडी हमदर्दी से देखकर छोड दिया हमे ।एक बात समझ आ गई हमे तब की बेकार मे परेशान होते है हम और सोच लिया कि अब कुछ भी हो अपना दीमाग ठंडा रखेगे । दिन बीतते गए मकान बनता गया पहले एक मंजील फिर दुसरी और बडता ही गया काम,सामान आता गया और परेशानी भी बडती गई, पर चलता है, धीरे -धीरे सामान ने सडक के अलावा हमारे और पडोसी के घर के आंगन पर भी कब्जा कर लिया, बडे pyar से पूछते हमसे 'भाई साहब 'सामान रखवा दे थोडा आपके आंगन मे और हम भी बडे pyar से हामी भर देते ।भाई साहब ये शब्द बडा pyara लगता उस समय ।फिर पडोसी ही तो समय पर काम आते है समझाते हम खुद को ,पर कभी -कभी अपनी अर्धांगिनी को नही समझा पाते।अब दिन, महीनों में और महीने साल बन गया था ।लगभग एक साल से ज्यादा हो गया, सारा मुहल्ला छोटी बडी परेशानीयों का आदी हो गया हम भी ,बस एक थी जो नही समझ पाती थी कि घर बन रहा था नही अब घर नही महल बन रहा था।एक दिन सुबह -सुबह हम हाथ में चाय का कप लिए शानदार महल को निहार रहे थे कि अंदर से आवाज आई अजी सुनते हो पता तो करो किसका घर है और कब तक बनेगा और हां अब रेत नहीं उतरवाना आंगन मे ,तंग आ गए है हम अपने घर की सफाई कर कर के ।हमे भी महसुस हुआ तब की बडी परेशानी होती होगी सफाई करने मे घर की,तभी एक और आवाज आई भाई साहब बस थोडा सा काम रह गया है ठंड के बाद तक हो जाएगा खतम (ठंड के बाद पर अभी तो बारिश का मौसम है हमने सोचा )परेशानी ना हो तो कुछ सामान. .... हमारा दिल एक मिनट के लिए बैठ गया कही रेत तो नही है सोचा पुछ ले क्या है पर हमारे कुछ कहने से पहले ही सामान खाली होने लगा और किसमत अचछी निकली रेत नही कुछ बोरीया थी क्या है उसमे पुछने का मौका नही मिला पर रेत नही होगी खुशी थी हमे जंग जीत आए हो जैसे हम। अगली सुबह हमारी निंद खुली जैसे ही गुस्से से भरी अपनी बैटर हाफ से मुलाकात हुई लगा जैसे इन्तजार हो रहा था हमारे उठने का हमने भी माजरे का अंदाजा लगा लिया बडे pyar से पुछा हमने क्या हुआ जी फिर से सामान आया क्या, सारा गुस्सा जैसे गायब हो गया उनका और आंखों मे एक दर्द आ गया ,बाहर चलो जी आदेश मिला हमे और हमने भी आदेश का पालन किया चुपचाप, बाहर आते ही देखा घर के बरामदे तक, बारिश का पानी भरा है रंग बिरंगा ,रेत तो है ही साथ मे कचरा भी बेइंतहा ,हम कुछ कहते इसके पहले ही , आप जा रहे हैं या हम जाए पुछा हमसे हमारी पत्नी ने ।हमे भी बडा गुस्सा आ ही रहा था हम जा रे कहा हमने और बडी नदी पार कर बाहर आ गये, बाहर सभी के घरो का लगभग वही हाल था ,किसी का ज्यादा किसी का कम पर सभी बिना शिकायत आराम से सफाई मे लगे थे ये देखकर हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर चड गया, हमने पडोसी को आवाज लगाई बडे जोर से जैसे उनके साथ कही जाना था हमले के लिए और देर हो गई ।अंदर से पडोसी आए पुछा क्या हुआ भाई हमने कहा चलो आज बात कर आए और दिखाए ।पडोसी ने हमसे जो कहा उसके बाद हमारा गुस्सा काफूर हो गया और हम वापस आ गए आते ही उनके कुछ कहने से पहले ही हमने भी जादुई शब्द कहे जिसने सारे मुहल्ले के गुस्से को गायब कर दिया था ,सुनकर हमारी पत्नी का इतने दिनों का गुस्सा भी गायब हो गया, साडी खोचकर वो बिना कुछ कहे सफाई मे लग गई और हमने भी दफ्तर फोन कर दिया नही आ पाएंगे आज ।सब ठीक हो गया । जानना चाहेंगे वो जादुई शब्द ,वो थे "मंत्री जी का घर बन रहा है "।
 देर रात शोरगुल से निंद खुल गई एक तो गरमी इतनी है की वैसे ही निंद नही आती आसानी से और ये शोर, जैसे जले पे नमक छिडक रहा हो कोई ,अभी आंख लगी ही थी ,खैर उठे हम, उठना ही था देखें तो हो क्या रहा है।बाहर सामान आया है किसी का, घर बन रहा है शायद ,लगभग उतर ही गया है सब, इतमीनान हुआ अब सोते है, लेटे ही थे आकर कि आवाज आई ,अजी देख लेते बाहर की अपने घर के सामने सामान ना उतार दे हमने ऐसे देखा जैसे कच्चा ही खा जाएगे अभी और सो गए ।सुबह हुई देर से निंद खुली सारे काम जलदी में निपटाए आज जलदी जो जाना था ,तैयार होकर बाहर आए, बाहर का नजारा देखने के बाद जैसे रात के गुस्से को भी जगह मिल गई बाहर आने की ,सारी सडक पर रेत पडी थी हमारे घर के सामने भी ।किसका सामान है ये हम जोर से चिल्लाए सारा गुस्सा जो उतारना था हमे,हमारी आवाज सुनकर चाचाजी आ गए (मोहल्ले के बुजुर्ग है ,सब बहुत इज्जत करते हैं उनकी) बडी ही नम्र आवाज में हमसे पुछा बेटा क्या हुआ पहली बार इतने गुस्से में देख रहे है आपको ,ये सुनकर हमारा गुस्सा जाने कैसे गायब सा हो गया, हमने भी बडी शांती से सारी बात बता दी, सब सुनने के बाद बडी छोटी सी मुसकान आई उनके चेहरे पर और हमे समझाया गया कि पडोस मे घर बन रहा है, होता है, कोई जान कर किसी को परेशान नही करता नजरअन्दाज करना पडता है कभी -कभी, सब को परेशानी होती है सभी कर रहे है आप भी करो ,चलाना पडता है इतना तो ।सुनकर हमे भी समझ आ गया नाहक ही खफा हो रहे थे हम और इतना वक्त बरबाद कर दिया है हमने वो अलग, तुरंत ही बाईक निकाली, बडी मशक्कत के बाद सडक पार की, पर कर ली ।अब सारे रास्ते सोचते रहे की पहुंच कर क्या बोलना है दफ्तर पहुचें और सारे रास्ते जो याद किया वो नही बोल पाए,बस इतना ही कहा हमने की काम चल रहा है boss ने मुहल्ले का नाम पुछा और बडी हमदर्दी से देखकर छोड दिया हमे ।एक बात समझ आ गई हमे तब की बेकार मे परेशान होते है हम और सोच लिया कि अब कुछ भी हो अपना दीमाग ठंडा रखेगे । दिन बीतते गए मकान बनता गया पहले एक मंजील फिर दुसरी और बडता ही गया काम,सामान आता गया और परेशानी भी बडती गई, पर चलता है, धीरे -धीरे सामान ने सडक के अलावा हमारे और पडोसी के घर के आंगन पर भी कब्जा कर लिया, बडे pyar से पूछते हमसे 'भाई साहब 'सामान रखवा दे थोडा आपके आंगन मे और हम भी बडे pyar से हामी भर देते ।भाई साहब ये शब्द बडा pyara लगता उस समय ।फिर पडोसी ही तो समय पर काम आते है समझाते हम खुद को ,पर कभी -कभी अपनी अर्धांगिनी को नही समझा पाते।अब दिन, महीनों में और महीने साल बन गया था ।लगभग एक साल से ज्यादा हो गया, सारा मुहल्ला छोटी बडी परेशानीयों का आदी हो गया हम भी ,बस एक थी जो नही समझ पाती थी कि घर बन रहा था नही अब घर नही महल बन रहा था।एक दिन सुबह -सुबह हम हाथ में चाय का कप लिए शानदार महल को निहार रहे थे कि अंदर से आवाज आई अजी सुनते हो पता तो करो किसका घर है और कब तक बनेगा और हां अब रेत नहीं उतरवाना आंगन मे ,तंग आ गए है हम अपने घर की सफाई कर कर के ।हमे भी महसुस हुआ तब की बडी परेशानी होती होगी सफाई करने मे घर की,तभी एक और आवाज आई भाई साहब बस थोडा सा काम रह गया है ठंड के बाद तक हो जाएगा खतम (ठंड के बाद पर अभी तो बारिश का मौसम है हमने सोचा )परेशानी ना हो तो कुछ सामान. .... हमारा दिल एक मिनट के लिए बैठ गया कही रेत तो नही है सोचा पुछ ले क्या है पर हमारे कुछ कहने से पहले ही सामान खाली होने लगा और किसमत अचछी निकली रेत नही कुछ बोरीया थी क्या है उसमे पुछने का मौका नही मिला पर रेत नही होगी खुशी थी हमे जंग जीत आए हो जैसे हम। अगली सुबह हमारी निंद खुली जैसे ही गुस्से से भरी अपनी बैटर हाफ से मुलाकात हुई लगा जैसे इन्तजार हो रहा था हमारे उठने का हमने भी माजरे का अंदाजा लगा लिया बडे pyar से पुछा हमने क्या हुआ जी फिर से सामान आया क्या, सारा गुस्सा जैसे गायब हो गया उनका और आंखों मे एक दर्द आ गया ,बाहर चलो जी आदेश मिला हमे और हमने भी आदेश का पालन किया चुपचाप, बाहर आते ही देखा घर के बरामदे तक, बारिश का पानी भरा है रंग बिरंगा ,रेत तो है ही साथ मे कचरा भी बेइंतहा ,हम कुछ कहते इसके पहले ही , आप जा रहे हैं या हम जाए पुछा हमसे हमारी पत्नी ने ।हमे भी बडा गुस्सा आ ही रहा था हम जा रे कहा हमने और बडी नदी पार कर बाहर आ गये, बाहर सभी के घरो का लगभग वही हाल था ,किसी का ज्यादा किसी का कम पर सभी बिना शिकायत आराम से सफाई मे लगे थे ये देखकर हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर चड गया, हमने पडोसी को आवाज लगाई बडे जोर से जैसे उनके साथ कही जाना था हमले के लिए और देर हो गई ।अंदर से पडोसी आए पुछा क्या हुआ भाई हमने कहा चलो आज बात कर आए और दिखाए ।पडोसी ने हमसे जो कहा उसके बाद हमारा गुस्सा काफूर हो गया और हम वापस आ गए आते ही उनके कुछ कहने से पहले ही हमने भी जादुई शब्द कहे जिसने सारे मुहल्ले के गुस्से को गायब कर दिया था ,सुनकर हमारी पत्नी का इतने दिनों का गुस्सा भी गायब हो गया, साडी खोचकर वो बिना कुछ कहे सफाई मे लग गई और हमने भी दफ्तर फोन कर दिया नही आ पाएंगे आज ।सब ठीक हो गया । जानना चाहेंगे वो जादुई शब्द ,वो थे "मंत्री जी का घर बन रहा है "।

देर रात शोरगुल से निंद खुल गई एक तो गरमी इतनी है की वैसे ही निंद नही आती आसानी से और ये शोर, जैसे जले पे नमक छिडक रहा हो कोई ,अभी आंख लगी ही थी ,खैर उठे हम, उठना ही था देखें तो हो क्या रहा है।बाहर सामान आया है किसी का, घर बन रहा है शायद ,लगभग उतर ही गया है सब, इतमीनान हुआ अब सोते है, लेटे ही थे आकर कि आवाज आई ,अजी देख लेते बाहर की अपने घर के सामने सामान ना उतार दे हमने ऐसे देखा जैसे कच्चा ही खा जाएगे अभी और सो गए ।सुबह हुई देर से निंद खुली सारे काम जलदी में निपटाए आज जलदी जो जाना था ,तैयार होकर बाहर आए, बाहर का नजारा देखने के बाद जैसे रात के गुस्से को भी जगह मिल गई बाहर आने की ,सारी सडक पर रेत पडी थी हमारे घर के सामने भी ।किसका सामान है ये हम जोर से चिल्लाए सारा गुस्सा जो उतारना था हमे,हमारी आवाज सुनकर चाचाजी आ गए (मोहल्ले के बुजुर्ग है ,सब बहुत इज्जत करते हैं उनकी) बडी ही नम्र आवाज में हमसे पुछा बेटा क्या हुआ पहली बार इतने गुस्से में देख रहे है आपको ,ये सुनकर हमारा गुस्सा जाने कैसे गायब सा हो गया, हमने भी बडी शांती से सारी बात बता दी, सब सुनने के बाद बडी छोटी सी मुसकान आई उनके चेहरे पर और हमे समझाया गया कि पडोस मे घर बन रहा है, होता है, कोई जान कर किसी को परेशान नही करता नजरअन्दाज करना पडता है कभी -कभी, सब को परेशानी होती है सभी कर रहे है आप भी करो ,चलाना पडता है इतना तो ।सुनकर हमे भी समझ आ गया नाहक ही खफा हो रहे थे हम और इतना वक्त बरबाद कर दिया है हमने वो अलग, तुरंत ही बाईक निकाली, बडी मशक्कत के बाद सडक पार की, पर कर ली ।अब सारे रास्ते सोचते रहे की पहुंच कर क्या बोलना है दफ्तर पहुचें और सारे रास्ते जो याद किया वो नही बोल पाए,बस इतना ही कहा हमने की काम चल रहा है boss ने मुहल्ले का नाम पुछा और बडी हमदर्दी से देखकर छोड दिया हमे ।एक बात समझ आ गई हमे तब की बेकार मे परेशान होते है हम और सोच लिया कि अब कुछ भी हो अपना दीमाग ठंडा रखेगे । दिन बीतते गए मकान बनता गया पहले एक मंजील फिर दुसरी और बडता ही गया काम,सामान आता गया और परेशानी भी बडती गई, पर चलता है, धीरे -धीरे सामान ने सडक के अलावा हमारे और पडोसी के घर के आंगन पर भी कब्जा कर लिया, बडे pyar से पूछते हमसे 'भाई साहब 'सामान रखवा दे थोडा आपके आंगन मे और हम भी बडे pyar से हामी भर देते ।भाई साहब ये शब्द बडा pyara लगता उस समय ।फिर पडोसी ही तो समय पर काम आते है समझाते हम खुद को ,पर कभी -कभी अपनी अर्धांगिनी को नही समझा पाते।अब दिन, महीनों में और महीने साल बन गया था ।लगभग एक साल से ज्यादा हो गया, सारा मुहल्ला छोटी बडी परेशानीयों का आदी हो गया हम भी ,बस एक थी जो नही समझ पाती थी कि घर बन रहा था नही अब घर नही महल बन रहा था।एक दिन सुबह -सुबह हम हाथ में चाय का कप लिए शानदार महल को निहार रहे थे कि अंदर से आवाज आई अजी सुनते हो पता तो करो किसका घर है और कब तक बनेगा और हां अब रेत नहीं उतरवाना आंगन मे ,तंग आ गए है हम अपने घर की सफाई कर कर के ।हमे भी महसुस हुआ तब की बडी परेशानी होती होगी सफाई करने मे घर की,तभी एक और आवाज आई भाई साहब बस थोडा सा काम रह गया है ठंड के बाद तक हो जाएगा खतम (ठंड के बाद पर अभी तो बारिश का मौसम है हमने सोचा )परेशानी ना हो तो कुछ सामान. .... हमारा दिल एक मिनट के लिए बैठ गया कही रेत तो नही है सोचा पुछ ले क्या है पर हमारे कुछ कहने से पहले ही सामान खाली होने लगा और किसमत अचछी निकली रेत नही कुछ बोरीया थी क्या है उसमे पुछने का मौका नही मिला पर रेत नही होगी खुशी थी हमे जंग जीत आए हो जैसे हम। अगली सुबह हमारी निंद खुली जैसे ही गुस्से से भरी अपनी बैटर हाफ से मुलाकात हुई लगा जैसे इन्तजार हो रहा था हमारे उठने का हमने भी माजरे का अंदाजा लगा लिया बडे pyar से पुछा हमने क्या हुआ जी फिर से सामान आया क्या, सारा गुस्सा जैसे गायब हो गया उनका और आंखों मे एक दर्द आ गया ,बाहर चलो जी आदेश मिला हमे और हमने भी आदेश का पालन किया चुपचाप, बाहर आते ही देखा घर के बरामदे तक, बारिश का पानी भरा है रंग बिरंगा ,रेत तो है ही साथ मे कचरा भी बेइंतहा ,हम कुछ कहते इसके पहले ही , आप जा रहे हैं या हम जाए पुछा हमसे हमारी पत्नी ने ।हमे भी बडा गुस्सा आ ही रहा था हम जा रे कहा हमने और बडी नदी पार कर बाहर आ गये, बाहर सभी के घरो का लगभग वही हाल था ,किसी का ज्यादा किसी का कम पर सभी बिना शिकायत आराम से सफाई मे लगे थे ये देखकर हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर चड गया, हमने पडोसी को आवाज लगाई बडे जोर से जैसे उनके साथ कही जाना था हमले के लिए और देर हो गई ।अंदर से पडोसी आए पुछा क्या हुआ भाई हमने कहा चलो आज बात कर आए और दिखाए ।पडोसी ने हमसे जो कहा उसके बाद हमारा गुस्सा काफूर हो गया और हम वापस आ गए आते ही उनके कुछ कहने से पहले ही हमने भी जादुई शब्द कहे जिसने सारे मुहल्ले के गुस्से को गायब कर दिया था ,सुनकर हमारी पत्नी का इतने दिनों का गुस्सा भी गायब हो गया, साडी खोचकर वो बिना कुछ कहे सफाई मे लग गई और हमने भी दफ्तर फोन कर दिया नही आ पाएंगे आज ।सब ठीक हो गया । जानना चाहेंगे वो जादुई शब्द ,वो थे "मंत्री जी का घर बन रहा है "।