हां चली जाऊं दूर कहीं मैं क्षितिज के उस पार मुक्ति पाऊं बंधनों से ना सहूं अनाचार। समा जाऊं सूर्य की लालिमा की भांति जहां अनगिनत रश्मियों का मिलन शांत करता है हृदय की जिज्ञासाओं को । उस किनारे जाना है जहां प्राप्त करूं तन्हाई से शून्य तक के सफर को ....। रश्मि वत्स...। ©Rashmi Vats #dawnn