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गरीब की रसोई में दाल ,रोटी, पुलाव आ गये हैं। शुक्र

गरीब की रसोई में दाल ,रोटी, पुलाव आ गये हैं।
शुक्र हैं, मेरे इलाके के पंचायती चुनाव आ गये हैं।

छोड़ अपना आँगन ,जो शहरों में जा बसे थे कभी,
मेरे मालिक बनने के लिये, फिर से गांव आ गये हैं।

भूल गए थे हमलोग जो मुद्दे , पिछले पाँच सालों में,
भाषण सुनकर लगा, सामने पुराने घाव आ गये हैं।

घर पर आने लगे हैं, जब से सारे "पंचवर्षीय मेहमान",
चैन की तलाश में ,खेतों की ओर मेरे पाँव आ गये हैं।

भरोसा कैसे करें जनता, इनके झूठे खोखले वादों का ,
कुछ दिनों का जो, ये लेकर मौसमी लगाव आ गये हैं।

अब जनता का सेवा करना इतना ज़रूरी नहीं, 'केशव'
कुर्सी जीतने के अब बाजार में ,बहुत से दाव आ गये हैं।

©keshav #Election2020 

#election
गरीब की रसोई में दाल ,रोटी, पुलाव आ गये हैं।
शुक्र हैं, मेरे इलाके के पंचायती चुनाव आ गये हैं।

छोड़ अपना आँगन ,जो शहरों में जा बसे थे कभी,
मेरे मालिक बनने के लिये, फिर से गांव आ गये हैं।

भूल गए थे हमलोग जो मुद्दे , पिछले पाँच सालों में,
भाषण सुनकर लगा, सामने पुराने घाव आ गये हैं।

घर पर आने लगे हैं, जब से सारे "पंचवर्षीय मेहमान",
चैन की तलाश में ,खेतों की ओर मेरे पाँव आ गये हैं।

भरोसा कैसे करें जनता, इनके झूठे खोखले वादों का ,
कुछ दिनों का जो, ये लेकर मौसमी लगाव आ गये हैं।

अब जनता का सेवा करना इतना ज़रूरी नहीं, 'केशव'
कुर्सी जीतने के अब बाजार में ,बहुत से दाव आ गये हैं।

©keshav #Election2020 

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