रचना नंबर 2 ज़िन्दगी और वक्त जिंदगी और वक्त कभी भी हमारे हिसाब से नहीं चलतीं हैं हम ख़्वाब और हकीक़त में फ़र्क अभी समझने की कोशिश करते हीं हैं तब तक वो जीने के बहाने देते जाते हैं कभी ख़ुद ही हँसाते हैं कभी ख़ुद ही रुलाते हैं कि समझ ही नहीं आता हम वक्त के साथ उसके अनुसार अपनी ज़िन्दगी जी रहें हैं या ज़िन्दगी जैसा चाहती है वैसा वक्त के साथ जीते जा रहे हैं वैसे ही हम ज़िन्दगी में हवा की तरह बहते जा रहे हैं पानी में गोते लगाते जा रहे हैं मंज़िल के सफ़र में आगे बढ़ते जा रहे है ज़िन्दगी और वक्त में समाजस्य बैठाए जा रहें हैं।। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkdrpanchhisingh #kkकविसम्मेलन #kkकविसम्मेलन2