क्या कहूं अब मन करता नहीं कुछ कहने का बिना कहे समझ लेता वो खुद नहीं मेरा थक गई रूह मेरे चौखट पर माथा टेकते टेकते मिला ना कोइ फरिश्ता कभी सैयद पाप की की आग ने उसे निगल लिया कही इंतजार बड़ा लम्बा होगया की बचा अल्फ़ाज़ भी कही खोगया दर्द अब अपने खुद में ही सिमट जाते हैं आज के जमाने में लोग ग्यरो का दर्द भला कहा अपनाते हैं आसाओ और दुआओ को अब भी जिंदा रखा हैं दर्द में भी तेरे चौखट पे मथा टेका है फ़रियाद नहीं कम से कम तेरे हस्ती का नजारा तो देख और क्या कहूं अब जरा सा ये आंधेरा तो देख ,,,,,,no wards to fall in my pain in own words no words to clear my pain #Forest