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कितने मस्त थी वो रातें गर्मियों की जब छत पर लेटकर

कितने मस्त थी वो रातें गर्मियों की जब छत पर लेटकर इठलाते थे

ओर याद है वो बचपन जब रात को हबाई जहाज गिनते गिनते सो जाते थे हमारे लड़खड़ाते शब्द
कितने मस्त थी वो रातें गर्मियों की जब छत पर लेटकर इठलाते थे

ओर याद है वो बचपन जब रात को हबाई जहाज गिनते गिनते सो जाते थे हमारे लड़खड़ाते शब्द

हमारे लड़खड़ाते शब्द #कविता