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मैं ही डर हूँ.... डर मेरा बस मैं ही हूँ, क्यूंकि

 मैं ही डर हूँ....

डर मेरा बस मैं ही हूँ,
क्यूंकि मैं जवाला जैसी हूँ
अग्नि भीतर जलती है,
मैं अग्नि के ही जैसी हूँ |

क्रोध में कर तांडव मैं,
सब भस्म कर देती हूँ
अपना हो या कोई और,
मैं हर रिश्ता तोड़ लेती हूँ |

क्या करूँ इस क्रोध का,
जिससे मैं भी डरती हूँ
दिल ना भी चाहे कुछ अगर,
मैं वो गलत फैसला ले लेती हूँ |

मैं दिल से बेकार नहीं पर,
क्रोध मैं कुछ और हूँ 
मैं कहाँ दूसरों से दरी कभी
मैं खुद के डर मैं चूर हूँ ||

©Tanisha's Tones
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