क्यूँकर ये कहें मिन्नत-ए-आदा न करेंगे क्या क्या न किया इश्क़ में क्या क्या न करेंगे तुम मिरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता न मानूँगा नसीहत पर न सुनता मैं तो क्या करता कि हर हर बात में नासेह तुम्हारा नाम लेता था दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया देर तलक वो मुझे देखा किया किसी का हुआ आज कल था किसी का न है तू किसी का न होगा किसी का थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब ―मोमिन खां मोमिन #शायरी_के_अल्फ़ाज़ #शायरी #योरकोट_दीदी #योरकोटबाबा #गीत #ग़ज़ल