मेरी मोहब्बत के न वो काबिल निकला । मेरा मुहाफिज ही मेरा कातिल निकला। हुनर ऐसा है उनका कि हुनर भी मात खा जाए , रकीबों में जश्न में शामिल निकला। मेरा मुहाफिज.......। भंवर में भी न डूबी ऐ मेरी कश्ती बता तू क्यूं ? वहीं आई है बहकर जो तेरा साहिल निकला ।। मेरा मुहाफिज ही मेरा कातिल निकला । [रवि] ©Ravi Ranjan Kumar Kausik मुहाफिज ही कातिलPushkar चाँदनी वंदना ....