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ख़ुद को भुला दे प्यार वो नशा है कहे महबूब ही अब मे

ख़ुद को भुला दे प्यार वो नशा है
कहे महबूब ही अब मेरा खुदा है।

तन्हा जो ज़िंदगी करनी पड़े बसर 
लगता जैसे  ज़िंदगी एक क़ज़ा है।

जिसे हासिल हुआ  प्यार  ज़िंदगी में 
धड़कनें रहती उसकी हमेशा जवां है।

जिसके नसीब में नहीं होता लिखा 
उसको ज़िंदगी से  रहता  गिला है।

और क्या दास्तां कहे इसकी 'अर्चना' 
प्यार नहीं तो ज़िंदगी में कहाॅं मज़ा है।

©Archana Verma Singh
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