जात-पात के बंधन से दो खुद को आजादी, जमीन बाँटी, सीमायें की बहुत सारी, मजहब के नाम पर बाँट दी दुनिया आधी, अब बस करो और बंद करो ये बर्बादी, आँखें खोलो कितना खोया कितनी बस्ती उजाड़ी, तब आयेगा समझ माँ भारती कैसे ये सब सह पायी, क्यों बने हम अत्याचारी क्यों बने हम हरजाई? मानवता को भूला अपनों ने अपनों की तबाही चाही, पा क्या लिया इतना कुछ खो बन कर अभिमानी, रक्त का रंग सबका लाल फिर क्या सोच चोट पहुँचाई, अभी समय है समझ जाओ बन कर रहो भाई-भाई, तैयार खड़े दुश्मन जिन्होंने पहले भी अपनी रोटियां पकाई, हर इंसान तरक्की पायेगा जब नहीं जात-पात की पाबंदी, जात-पात के बंधन तोड़ बनो सबके सुख दुःख के साथी। ©Priya Gour जात-पात.....✨hum sab ek h dil se mano to svikaro to Apne aap lgega dharm apni jgh shi or deshprem sbse upr #Twowords #26June 7:52