इन्द्र धनुष सा है जीवन मेरा जवानी में असमान में बिखर रहा हूँ बुढ़ा होकर इक दिन में भी इन्द्र धनुष सा बिखर जाऊंगा भूल जाता हूँ अक्सर में भी अतीत मेरा कैसा गुजरा है नई ऊंचाईयों की चाहत में मैं भी अतीत बनकर रह जाऊँगा ©Yogi Raj Bharti इन्द्र धनुष और अतीत