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आते थे पीपल की छांव में वो गांव अब तो गांव नहीं बन

आते थे पीपल की छांव में वो गांव अब तो गांव नहीं
बन गई हैं पक्की गलियां चलना अब नंगे पांव नहीं

होती थीं चौपालें दिनभर वो छीन ली मोबाइल ने
अब चिट्ठी संदेशों का.......कोई भी इंतज़ार नहीं

बचपन बीत रहा कार्टून्स में गिल्ली डंडों का शौक कहां
दादी नानी के किस्सों की अब तो कोई शाम नहीं

बन रहा है अब डिजिटल भारत मिट रही सब रीति पुरानी 
अब न कहना कि शहरों सा गांवों में कोई काम नहीं #village #digitalindia
आते थे पीपल की छांव में वो गांव अब तो गांव नहीं
बन गई हैं पक्की गलियां चलना अब नंगे पांव नहीं

होती थीं चौपालें दिनभर वो छीन ली मोबाइल ने
अब चिट्ठी संदेशों का.......कोई भी इंतज़ार नहीं

बचपन बीत रहा कार्टून्स में गिल्ली डंडों का शौक कहां
दादी नानी के किस्सों की अब तो कोई शाम नहीं

बन रहा है अब डिजिटल भारत मिट रही सब रीति पुरानी 
अब न कहना कि शहरों सा गांवों में कोई काम नहीं #village #digitalindia