कितने कितने टैक्स लगाए जाते है जनता के सर भार बढाए जाते हैं पेट्रोल डीजल से बढ आटा चावल फिर मजहबी मुद्दों पर आवाम बहलाए जाते हैं कभी रेल कभी उद्यम की बिक्री कर अपने प्यारों को पैसे कमवाए जाते है गिरता है डालर आगे रूपया फिर भी छप्पन इंची शेर दिखाए जाते हैं किसी सवाल पर सरकार को चोट लगे गर 124 ए के फिर मुकदमे चलाए जाते हैं सात दशक लगे थे मुल्क बनाने में फिर सात बरस सपने दिखाए जाते हैं उस मुल्क का मुकद्दर जाने क्या होगा किताबों पर जहां टैक्स लगाएं जाते हैं साभार आशीष प्रकाश जी जिनकी गजल से प्रेरित हो यह रचना लिखी गई #gst #inflation #unemployment #tax #government #mehngayi #tvभ