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कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्। केषु क

कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योअसि भगवन्मया।।
(हे योगेश्वर!मैं किस प्रकार चिंतन करती हुई आपको जानूं और हे भगवान्!आप किन किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य है।।
जय देव बड़ा छमांहु ❤️

©Bhaरती
  #Bhagavadgita ❤️
bhartikotlu8620

Bhaरती

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