ढूँढ रहीं हूँ वो कल जिसमें ढलती शाम के साथ हों सुनहरी दोपहर बिताते हैं पल सालों जैसे मिलता नहीं सुकून किसी राहों पर रातों के इंतजार में दिन को भी जगाते हैं खुद को सच वो दो पल का सुकून रातों को भी नहीं मिल पाता हमको.. 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-65 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।