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चलना जरा संभलकर --------------------------- चल छो

चलना जरा संभलकर 
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चल छोङ दे वो सब,जहाँ बदनामी के छीटें पङें,
बदनामी से गुमनामी है, लाख गुनी अच्छी ।
बचपन की नादानियाँ सबको सम्मोहित करती हैं ,
वो बचपन की नटखटी नादानी है, किंतु सच्ची ।
तू युवा या प्रौढ़,तेरे करतब चौकाने वाले हैं ,
 चलना जरा संभलकर,कोई बात ना कर कच्ची ।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
  चलना जरा संभलकर

चलना जरा संभलकर #कविता

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