रुठा रुठा सा इश्क़ बावरे मन की उलझन न सुलझे समझाऊँ तो समझाऊंँ मैं कैसे परेशानियांँ हैं कि बढ़ती ही जाती हैं इन्हें कम करूंँ तो मैं कैसे भंवर में फंँसी है मेरी जीवन नैया पार उतारूंँ तो उतारुंँ मैं कैसे मुश्किल भरी राहों में हैं हरदम अंधेरे,दीए गर जलाऊंँ तो मैं कैसे उलझन में उलझा रहता मेरा मन उलझन से निकलूंँ तो मैं कैसे ना कोई संगी ना साथी हाले दिल किसको सुनाऊंँ और मैं कैसे रहता है मुझसे रूठा रूठा सा इश्क़ मेरा उसे मनाऊंँ तो मैं कैसे समझता नहीं मेरे दिल की कोई बात उसे समझाऊंँ तो मैं कैसे रहती ही नहीं है सुध बुध हमें अब किस को बताऊंँ और मैं कैसे जिम्मेदारियांँ निभाने में जीवन गुजरता मन की करूंँ तो मैं कैसे दिल सुलगता है और आहें भी भरता है इसको मनाऊंँ तो मैं कैसे मन की उलझन हरपल डंँसती ही रहती है इससे बचूंँ तो मैं कैसे उलझनों के संग रहकर जीना हुआ मुश्किल अब जिऊंँ तो मैं कैसे कोई तो बता दो,कोई तो सीखा दो,उलझनों से उबारों हमें चाहे जैसे। #रुठारुठासाइश्क़ #कोराकागज #collabwithकोराकागज #KKSC12 #विशेषप्रतियोगिता